देवरिया बाबा का देवरिया आगमन
बाबा का देवरिया आगमन
सन् 1918 के आस-पास देवरिया जनपद में भंयकर सूखे के कारण प्राणिमात्र और पशु-पक्षी त्राहि-त्राहि चिल्ला रहे थे। किंकर्तव्यविमूढ़ होकर मानव अन्न के लिए और पशु-पक्षी आहार के लिए व्यग्र थे। सर-सरिता, नदी-नाले और कुएं सबका अन्तर नीरस हो चुका था, वृक्षों की पत्तियाँ सूख गयी थीं। एक विशाल वट वृक्ष के तले परिस्थिति के मारे खिन्न कुछ लोग बैठे थे। अपनी-अपनी ही नहीं समूचे उस प्रदेश के भाग्य की विडम्बना पर अश्रुपात कर रहे थे।
ऐसे में न जाने कहाँ से अवधूत वेशधारी, विशाल जटाजूटमण्डित, महान् तेजस्वी एक संत वहाँ प्रकट हो गये। ये और कोई नहीं हमारे परमपूज्य गुरुदेव श्री देवराहा बाबा थे जो उस जनसमूह के समक्ष जा पहुँचे थे। इस विलक्षण महापुरुष के स्वरूप में क्या आकर्षण था कि देखते ही नर-नारी मंत्रमुग्ध हो दौड़ पड़े। गगनभेदी जय घोष होने लगा “योगेश्वर महाराज की जय"।
अन्त में बैठने और शान्त होने का संकेत पाकर सब लोग बैठे और अपनी-अपनी विपत्ति सुनाने लगे- "बाबा पानी बरसाइए जिससे धरती की प्यास बुझे और बच्चों की भूख मिटे।" बड़ा आग्रह देखकर बाबा ने आदेश दिया- "अगर तुम लोग चाहते हो कि मैं यहाँ रहूँ तो मेरे लिए पर्ण कुटी बना दो।" बॉस-बल्ली-फूस सब जुटा लिए गये और झोपड़ी तैयार हो गयी। बाबा ने कुटी में घुसने से पहले कहा कि लोग अपने अपने घर पहुँच जाओ। श्री महाराज जी सरयू की ओर स्नान के लिए बढ़े। आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि जैसे ही बाबा ने सरयू में प्रवेश किया, वैसे ही क्षणमात्र में चारों ओर से बरसते हुए बादल आकाश में गर्जना करने लगे। सात दिन और सात रात वर्षा होती रही। सभी सर सरिता और कूप उमड़ पड़े। उस आनन्द की वृष्टि ने पूरे प्रदेश को हरा भरा कर दिया।
वहाँ की जनता में उल्लास भर गया। दिन पर दिन बाबा के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। सभी लोगों ने बाबा से प्रार्थना कि महाराज आज कृपा करके यहीं निवास करें और सबको आपका दर्शन प्राप्त होता रहे। वहाँ एक गुफा निर्मित हुई, बाबा उसमें रहने लगे। भक्तों की सेवा से प्रसन्न हो बाबा ने कहा- "यहाँ दियरा पड़ेगा और मैं सरयू माँ से प्रार्थना करूंगा कि वह जमीन दें, किन्तु इस शर्त पर कि तुम लोग चरागाह के लिए अधिक जमीन छोड़ दो और मेरा मंच भी दियारा में ही बनेगा।" विशाल दियरा पड़ा। बाबा वहीं मंच पर दर्शन देते थे। आजकल वही दियरा वहां के लोगों के जीवन का सहारा बना है।
पूज्य बाबा जब मईल के पास मंच पर विराजमान रहते, तो लार रोड से लेकर मचान तक का माहौल ऐसा रहता था जैसे कोई पावन उत्सव हो रहा हो। सभी जाने वालों का मन्तव्य एक ही रहता, अपनी समस्या का समाधान और संत दरश की आश बाबा का दर्शन और प्रसाद पाकर भक्तों के दुःख और कष्ट दूर हो जाते थे। साथ ही साथ जीवन का एक सम्बल भी प्राप्त हो जाता था।
प्रतिदिन प्रातः 3 बजे महाराज जी के स्नान एवं योगक्रियाओं का कार्यक्रम प्रारम्भ हो जाता जो करीब दो घंटे तक गंगा, यमुना, सरयू आदि के जल में चलता रहता। 5 बजे से ही दर्शनार्थी पहुंच जाते जो क्रम 10 बजे रात्रि तक अनवरत चलता रहता। 10 बजे रात्रि में श्री महाराज पुनः नदी के जल में चले जाते और 12 बजे के लगभग लौटते, किंतु 12 बजे रात्रि को भी विश्राम नहीं। 12 बजे से संत-महात्माओं तथा योग के साधकों को उपदेश का क्रम चलने लगता था और रात्रि 3 बजे तक यह क्रम चलता। उनके इस दैनिक क्रियाकलाप में कभी अन्तर नहीं पड़ता था। बाबा प्रायः देवरिया के उस मंच पर ही रहते थे। माघ के महीने में मकर संक्रांति के समय अमावस्या से पहले प्रयाग पधारते थे और शिवरात्रि तक गंगा जी के दूसरे किनारे मंच पर दर्शन देते थे। वहाँ से वृन्दावन धाम में यमुना जी के पार मंच पर होली से रामनवमी तक दर्शन देते। वृन्दावन से बाबा हरिद्वार और देहरादून दर्शन देने जाते, उसके उपरान्त वाराणसी में अस्सी घाट के उस पार गंगा जी के अंदर मंच के ऊपर दर्शन देते फिर गंगा दशहरे के पश्चात् वे देवरिया प्रस्थान कर देते थे। उत्तराखंड, पटना आदि स्थानों पर बाबा कभी-कभी दर्शन देते थे।
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