SHRI DEVRAHA BABA INTRODUCTION

बाबा का प्राकट्य
महाराज जी का प्रादुर्भाव कब और कहाँ हुआ है, इस सम्बन्ध में जिज्ञासा होना स्वाभाविक है, किन्तु उनके संकेतों से यही ज्ञात होता है कि उनका आविर्भाव माता सरयू के जल से हुआ था, इसलिए सरयू ही उनकी माता हैं। बाबा का शरीर चिन्मय था प्राकृत नहीं।

सदैव सहजावस्था में रहने वाले बाबा की आयु का आकलन कोई 300 वर्ष, कोई 500 वर्ष और कोई 2100 वर्ष करता था। बाबा कहते थे कि उनकी स्थिति ईश्वरलीन हैं। अर्थात् योगी में ईश्वर और ईश्वर में योगी ईश्वरलीन अवस्था प्राप्त करने के लिए उन्होंने क्या क्रियायें थीं। इसके उत्तर में बाबा ने बताया

महामुद्रा महाबन्धो महावेध्यश्च खेचरी । उड्डियानमूलबन्धश्च बन्धो जालन्धराभिधः ॥
करणी विपरीताख्या वज्रोली शक्तिचालनम्।
इदं हि मुद्रा दशमं जरामरणनाशकम् ॥

खेचरी मुद्रा में योगी अपने जीभ को पलटकर कपाल-कुहर में ले जाता है। जहाँ अमृतस्राव होता है। जिसका पान करके योगी समाधि की अवस्था में स्थित रह सकता है। योगी की आयु एक प्रहर प्रतिदिन बढ़ती है।

स्वामी राम अपने प्रसिद्ध पुस्तक “लिविंग विथ हिमालयन योगी” में लिखा है कि बाबा एक महान् योगी हैं जिनकी आयु का आकलन नहीं किया जा सकता । वे हमेशा योग की मुद्रा में स्थित रहते हैं।
बाबा का कथन है— "बच्चा, योगियो की आयु की सीमा नहीं होती।” 

खाद्यते न च कालेन वाध्यते न च कर्मणा।
साध्यते न च केनापि योगी युक्तः समाधिना ॥

अर्थात् समाधियुक्त योगी को काल नहीं खाता और कर्म नहीं बाँधता तथा किसी प्रकार भी वह साधा नहीं जा सकता। बाबा प्रातः मध्याह्न एवं सायंकाल स्नान करते। मंच के अन्दर भी कभी-कभी मिट्टी के पात्र में रखे जल से स्नान करने का आभास होता। बाबा चौबीस घण्टे में केवल एक बार 200 ग्राम दूध किसी-किसी दिन ग्रहण करते थे। खेचरी मुद्रा सिद्ध होने से सभी प्रकार के पोषण तत्व उन्हें प्राप्त होते रहते थे। उनका उदर सटकर एक प्रकार से पीठ बन गया था और वे सदा उड्डीयान बंध लगाये रहते थे।

जगदम्बा की आकाशवाणी
एकबार बाबा विन्ध्यवासिनी माता की परिक्रमा कर रहे थे, उसी समय आकाशवाणी हुई- "योगिराज! इस समय जगत् में योग की क्रिया लुप्तप्राय हो रही है। उसका भी प्रचार करना आपका कर्तव्य है। पर यह तभी सम्भव है जब किसी एक स्थान में स्थित होकर शिष्य परम्परा के द्वारा प्रचार किया जाय और भगवद्भक्ति का भी प्रचार आपसे ही हो सकता है। इस कलियुग में भगवद्भक्ति के बिना ससार से मुक्ति नहीं हो सकती।"

"हे महाप्रज्ञ! अब आप सरयू नदी के तट पर निवास करें, अपनी सारी यौगिक क्रियाओं का स्मरण कर, अनेक मतवादियों के अनेकानेक मत प्रचार से अनिश्चयात्मक बुद्धि वाले जनसमूह का उद्धार करें। क्योंकि संसार के उद्धार के लिए ही इस मानव-विग्रह में आप अवतीर्ण हुए हैं।"


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